खुद की प्रकृति कैसे पहचाने , वात, पित्त, कफ प्रकृति लक्षण, उपाय, खानपान सविस्तर जानकरी हिंदी में|

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 प्रकृति क्या है?(What is Prakruti) 

प्रकृति शब्द दो शब्दों से बना है प्र + कृति। याहा ‘प्र’ से अर्थ है प्रकट होना, और कृति से अर्थ है सृष्टि/संरचना।आयुर्वेद के उपाय हर एक व्यक्ति की प्रकृति अलग होती है शारीरिक प्रकृति त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) की प्रबलता अनुसार होती है, आयुर्वेद संहिता में वर्ण दिया गया है की प्रकृति का निर्माण गर्भधारण के समय दोषों की प्रबलता के आधार पर होती है. प्रत्येक मनुष्य की शारीरिक बनवत कद- काठी,चेहरा, त्वचा का रंग, बोल चल का तारिका, उनके व्यक्तिगत स्वभाव अलग होते हैं उसी प्रकार व्यक्ति की शारीरिक प्रकृति भी भिन्न भिन्न होती है।हमारी प्रकृति जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे साथ रहते हैं। हम अपनी प्रकृति बदल नहीं सकते।

प्रकृति के प्रकार( Prakriti Types)

  1. 1. वात प्रकृति
  2. पित्त प्रकृति
  3. कफ प्रकृति
  4. वात – पित्तज प्रकृति
  5. वात-कफज प्रकृति
  6. पित्त कफज प्रकृति
  7. समदोषज (वात, पित्त, कफ) प्रकृति
प्रकृति की श्रेष्ठता क्रमानुसर
  1. सर्वश्रेष्ठ प्रकृति – समदोषज प्रकृति
  2. कफज प्रकृति
  3. पित्त प्रकृति
  4. वात प्रकृति
  5. द्वंद्वज प्रकृति

खुद की प्रकृति जनने का महत्व

खुद की प्रकृति जाना इसिलिए जरूरी क्यों कि अगर हमें पता हो कि हमारी प्रकृति क्या है तो हम उसके अनुसार अपना खानपन, अपनी आदतें में सावधानी रख सकते हैं। इसके अलावा कौनसा व्यायाम करना चाहिए कौनसा नहीं ये भी प्रकृति के पर निर्भर होता है.

वात प्रकृति:

वात प्रकृति वाले व्यक्ति का शारीरिक बल अल्प रहता है। वात प्रकृति वाले व्यक्ति ज्यादा बोलने वाले होते है  उनकी स्किन में रुखपन रहता है। ऐसे  ऐसे व्यक्तियों के बाल झड़ना के बाल झड़ना , बालों का टूटना, बाल पतला होना ये समस्या रहती है। वात प्रकृति वाले व्यक्ति में चलते समय या उठते समय हड्डियों में आवाज आना, कड़ा लगना ये लक्षण दिखते हैं। ऐसे व्यक्तियों को ठंडी चीज ज्यादा पसंद नहीं आती।

समस्या:

वात प्रकृति वाले का जठराग्नि विषम रहता है। इसका असर इनकी भुख पर होता है इन्हे कभी बहुत भुख लगती है, कभी बिलकुल भी भुख नहीं लगती। वात प्रकृति वाले व्यक्ति का कोष्ठ क्रूर बताया गया है , क्रूर कोष्ट मतलब पर साफ होने की समस्या रहेगी कभी कब्ज रहेंगे, कभी ब्लोटिंग या गैस हो सकता है ऐसे लक्षण दिखाएंगे।

मानसिक लक्षण :

वात प्रकृति वाले व्यक्ति का मन शांत स्थिर नहीं रहेगा। इनहे एकाग्रता कामी रहेगी. हर काम को करने में जल्दी रहेगी। वात प्रकृति व्यक्ति की निंद भी इतनी अच्छी नहीं होती थोड़ी आवाज पर इनकी निंद खुलती है।ऐसे व्यक्तियो में निर्णय लेने की क्षमता काम रहती है।

वात को कम करने के उपाय:

वात को कम करने के लिए आप पंचकर्म में स्नेह कर सकते हैं, स्नेहन 2 प्रकार होता है अभ्यंतर (Internal), बाह्या (External). अभ्यंतर स्नेहन के लिए आप तिल का तेल, घी, मूंगफली के तेल का प्रयोग करें। बाह्य स्नेह के लिए आप तिल के तेल में नारायण तेल या फिर महानारायण तेल मिलाके मलिश कर सकते हैं। बहोत ज्यादा वात बढ़ा है तो आप आयुर्वेद विशेषज्ञ से बस्ती कर्म चिकित्सा करवा ले।

खानपान:

आहार लेते समय आपको 3 स्वाद (रस) का सेवन जरूर करें मीठा(मधुर), खट्टा और लवन (खारा)। आहार लेते समय एक और बात का ध्यान रखे कि भोजन ताजा बना हो, गरम हो। फ्रेश और गरम भोजन करने से स्निग्धता बढेगी जिससे वता कम होगा. आप कुछ आसव अरिष्ट भी ले सकते हैं अश्वगंधारिष्ट, बालारिष्ट इसे वता कम करने के लिए उपयुक्त बताया गया है।

सावधानी :

वात प्रकृति व्यक्ति को ज्यादा व्यायाम, शरीरिक महनत नहीं करनी चाहिए इसे इससे वात वृद्धि हो सकती है। आप हल्के फुलके व्यायाम और प्राणायाम कर सकते हैं।

पित्त प्रकृति:

पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति का शारीरिक बाल मध्यम रहता है।पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति गौर वर्ण के रहते हैं। ऐसे व्यक्तियो की त्वचा किंचित उष्ण रेहती है।इन्हे अधिक पसीना आता है. इनहे स्किन जालान महसूस होती है। पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति के बाल समय से पहले सफेद हो सकते हैं। पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति की जठराग्नि तीक्ष्ण होता है इन्हे भुख भी अधिक लगती है और इनका पचन भी जल्दी, अच्छा रहता है. पित्त ज्यादा होने के कारण इनको  एसिडिटी की समस्या रह सकती है। हाथो और पैरों में जालान भी होती है।

मानसिक लक्षन:

पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति बुद्धिमान होते है। ये अच्छे वक्त भी होते हैं . ऐसे व्यक्तियों को गुस्सा ज्यादा आना इरिटेशन होना ये लक्षण रहता है। पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति साहसी होते हैं।

खानपान:

मसालादार, तला हुआ आहार पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति को वर्ज्य करना चाहिए। बेकरी फूड्स, जंक फूड भी इनको काम से काम मात्रा में सेवन करना चाहिए। पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियो को भोजन करने का एक समय निश्चित कर्ण चाहिए। कोशिश करें कि आपके आहार में कड़वा, मीठा,कसैला ये 3 स्वाद (रस) जरूर राखे। पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति को गाय का दूध, घी आवश्यक खाना चाहिए। काला मुनक्का रात को भीगाकर सुबह खाए इसे बढ़ा हुआ पित्त के होगा , गुलकंद भी पित्त को कम करने में मदद करता है।

सावधानि:

पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियो को ज्यादा स्पाइसी,  भोजन ना करे। कोशिश करें कि ठंडी चीज जैसे पित्तशामक पदार्थो का ज्यादा सेवन करें।

कफ प्रकृति:

कफ प्रकृति वाले व्यक्तियो का शारीरिक बल अधिक होता है। इनका वजन भी थोड़ा ज्यादा होता है। इनकी त्वचा में स्निग्धता होती है। आवाज़ में मधुरता होती है। कफ प्रकृति वाले व्यक्ति शांत, स्थिर होते है। कफ प्रकृति वाले व्यक्तियो में आलस भी होता है. कफ प्रकृति वाले व्यक्तियो का अग्नि मंद होता है। इनका भोजन का पचन जल्दी नहीं होता। इसीलिये कफ प्रकृति वालों का ज्यादा भारी भोजन नहीं करना चाहिए।

मानसिक लक्षण:

कफ प्रकृति वाले व्यक्ति समाधान होते हैं। इनकी एकाग्रता , स्मरणशक्ति बहुत अच्छी होती है।

खानपान:

आहार में इनको तीखी, कड़वी, कसैला, स्वाद रखने चाहिए इसे इनका कफ नियत्रित रहाणे में मदद मिलेगी। कफ प्रकृति वाले व्यक्तियो को सोंठ , काली मिर्च, पिंपली इनको समान मात्रा में लेकर इसका मंथन बनाकर राखे और खाने से 1/2 घंटा पहले इसका सेवन करे। इसका अग्नि बढ़ाने में मदद होगी और भोजन का ठीक से पचन होगा। कफ प्रकृति वाले व्यक्तियो को बाजरा की रोटी खाना अच्छा होता है। हनी भी कफ को कम करने में अच्छा है।

सावधानिया:

कफ प्रकृति वाले व्यक्तियो को दिन में सोना नहीं चाहिए, ज्यादा वसा (fats)युक्त आहार नहीं लेना चाहिए।

ऊपर दी गई तीनो प्रकृति क वर्णन दो दोष प्रकार की प्रकृति में भी लागू होता है जैसे अगर आपकी वता कफज प्रकृति है तो दोनो में जो प्रधान है उसके ज्यादा गुण रहेंगे, वैसे ही बाकी बच्ची प्रकृति का भी है जो प्रकृति में जो दोष की मात्रा अधिक होगी उसके लक्षण उनके अनुसर होंगे। समदोषज प्रकृति मैं तीनो दोष समान रूप में रहेंगे। आप अपनी प्रकृति अपने लक्षणों के अनुसर अनुमान लगा सकते हैं।

उम्मीद है ऊपर दिया गया लेख आपको अपनी प्रकृति निर्धारित करने में मददगार होगा। अगर आपको ये लेख अच्छा लगा तो इसे और लोगोके साथ भी साझा करें।

 

 

 

 

 

 

 

 

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