पंचकोष – हमारे पाँच आवरन कोनसे है हिंदी में ? (Which are Five Sheaths/bodies?)

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Written by Dr. Priyanka Borde.

 

योग दर्शन मे बताया गया है कि हमारा शरीर वास्तव मे तीन शरीरो से मिलकर बना है भौतीक, सूक्ष्म और कारण | हमारा मानव शरीर पाच भागो मे बटा है जिसे पंचकोश कहते है | प्रत्येक कोश का एक दूसरे के साथ घनिष्ठ संबंध होता है |

  1. अन्नमय कोष – Physical Sheath/Body
  2. प्राणमय कोष – Breath Sheath/ Body
  3. मनोमय कोष – Mental Sheath/Body
  4. विज्ञानमय कोष – Intellectual Body
  5. आनंदमय कोष – Causal Body

अन्नमय कोष (Physical Sheath/body) :

अन्नमय कोष अन्न के रस से उत्पन्न होता है, जो अन्नरस से ही बढता है और जो अन्न रुप पृथ्वी मे ही विलीन हो जाता है, उसे अन्नमय कोष एवं स्थूल शरीर कहते है | शरीर और मास्तिष्क के सारे क्रियाओ शक्ति ही विद्युत चेतना है उसी को अध्यात्म मे अन्नमय कोष कहा गया है | इसे ही Modern Language  मे जैवीय विद्युत बायो इलेक्ट्रिसिटी कहा गया है | इसीलिए ऋृषियो ने अन्न को ब्रम्ह कहा है | अन्न ब्रम्हेति | इस शरीर को पुष्ट और शुद्ध करने के लिए यम, नियम और आसन  का प्रावधान है | अन्नमय कोश को प्राणमय कोष ने ढक रखा है | प्राणमय को मनोमय, मनोमय को विज्ञानमय और विज्ञानमय को आनंदमय कोष ने ढक रक्खा है | यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह क्या सिर्फ शरीर के तल पर जी रहा है या कि उससे उपर के आवरणो में | या जागरण की स्थिती में है |

प्राणमय कोष (Breath Sheath) :

प्राणो से बना आवरन प्रणमय कोष है। (महत्वपूर्ण जीवन शक्ति ऊर्जा का आवरण) अन्नमय कोष से निकटतं से जुडा हुआ है, यह कोष भौतिक शरीर को अनुप्राणित करने के लिए जिम्मेदार है | प्राणमय कोष प्राण (जीवन शक्ति ऊर्जा) से बना है और प्राणायम (श्वास कार्य) से बहुत प्रभावित होता है | प्राणमय कोष श्वास और पांच प्रकार के वायु प्राण, उदान, अपान, समान और व्यान से बना है | प्राणमय कोष से ही संपूर्ण शरीर मे रक्तवहन संचालन मस्तिष्क तक संदेश पहूचाना सारी गतिविधिया होती है | प्राण संपूर्ण शरीर मे व्याप्त है |

मनोमय कोष (Astral Sheath) :

मनोमय कोष को मस्तिष्क मे केंन्द्रित माना जात है | मनोमय कोष वह स्थान है जहां व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करनेवाली सोचने की आदतो के साथ-साथ स्वयं की भावना विकसित होती है | मनोमय कोष हमारे विचारो भावनाओ से बना है | हम अपने जीवन मे निरंतर सुख-दुख के विरोध का अनुभव करते है जो हमे अस्थिर करता है और हमारे सुख दु:ख के लिए जिम्मेदार है |

चेतना हमारी इंद्रियो के माध्यम से बाहरी दुनिया से जुडे होने की क्रिया है, जो मन के माध्यम से मस्तिष्क से जुडी है | मन तीन स्तरो पर कार्य करता है |

  • चेतना : मन बाहरी दुनिया को मस्तिष्क से जोडता है |
  • अवचेतना : मन सभी अनुभवो का भंडार |
  • अचेतन मन : वास्तविक आत्म या आत्मान |

विज्ञानमय कोष (Intellectual Sheath)

विज्ञानमय का अर्थ है सूक्ष्मज्ञान या प्रज्ञा इस कोष मे हम सहज ज्ञान और चेतना के उच्च स्तर तक पहुचते है | यह कोष अंतज्ञनि का आसन है, जो आंतरिक ज्ञान  और चेतना की गहरी अवस्थाऔ से जुडा है |सह आंतरिक विकास और प्रामाणिकता के लिए भी जिम्मेदार होता है | ध्यान और धारणा (एक वस्तु पर मानसिक ध्यान) से विज्ञानमय कोष प्रभावित होता है |

आनंदमय कोष (Causal Sheath) :

आनंदमय कोष चेतना का वह स्तर है, जिनमें उसे अपने वास्तविक स्वरुप की अनुभुति होती रहती है | आनंदमय कोष तार्किक, विचारशील दिमाग से परे है, सर्वव्यापी चेतना के साथ एकता का अनुभव प्रदान करता है | आनंदमय कोष आत्मा की मुलभुत स्थिती की अनुभुति है, जिसे आत्मा का वास्तविक स्वरुप कह सकते है आनंदमय कोष जाग्रत होने पर जीव अपने आप को अविनाशी, ईश्वर अंश सत्य, शिव, सुदंर मानता है | यह स्थिती आत्मज्ञान कहलाती है | इसी स्थिती को देवत्व की प्राप्ति, आत्मसाक्षात्कार, ईश्वरदर्शन आदि नामो से पुकारते है |

पांच कोष जीवात्मा पर पढे हुए पांच आवरण है, प्याज की परते जिस प्रकार एक के ऊपर एक होती है उसी प्रकार आत्मा के प्रकाशवान स्वरुप का अज्ञान आवरण से ढके रहने वाले यह पांच कोष है |इन पांच कोष को जाग्रत करने के लिए ध्यान करना जरूरी है। हमारे ऋषि मुनियों को इसका पुरा ज्ञान यही योगदर्शन में इसका महत्व बताया गया है.

 

 

 

 

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