परिचय (Introduction):
अनुपश्चात सह वा पीयते इत्यनुपानम् | ( अष्टांग ह्रदय सूत्रस्थान 8/50)
औषधि सेवन के बाद जो तरल पदार्थ पान कराता है उसको अनुपान कहते हैं . रोग के अनुसर यदि सही अनुपान के साथ औषधियों का प्रयोग किया जाता है तो वह औषधि , अनुपान के कारण अत्यंत गुणशाली हो जाती है।
अनुपान का महत्व ( Importance of Anupan):
औषधियों और आहारो को अनुपान के साथ सेवन करने से औषधिया विलिन होकर तेजी से शरीर में फैली हुई जाति है और इसके करण औषधि कर्म मुझे भी सहायता मिलती है. जैसे जल में तैलबिन्दु दलाने पर तेल शिघ्रता से जल के चारों और फैल जाता है। , उसी प्रकार औषधि भी अनुपान के साथ शरीर में फेलकर शिघ्रता से शरीर पीआर अपना प्रभाव डालती है।
महर्षि अग्निवेश का मत है कि उचित रूप में अनुपान लेने पीआर मनुष्य तृप्त हो जाता है तथा आहार को सुखपूरक पचाता है, जिसे आयु व बल की वृद्धि होती है।
उत्तम अनुपान की व्याख्या: जो अनुपान आहार द्रव्यो के गुणों से विपरीत गुन वाला हो किन्तु विरोध न हो, वह श्रेष्ठ अनुपान है।
विभिन्न रोगो में दिए जानेवाले अनुपान :
1.ज्वर(Fever):
तुलसी की चाय , तुलसी के पत्ते का रस, अदरक का रस,पान का रस, मिश्री की चासनी.
2.वात ज्वर :
शहद, गिलोय का रस , पटसन (लाल पटुआ) तथा चिरायता का ठंडा कषाय, तुलसी पत्र स्वरस, लौंग का पानी।
3.पित्त ज्वर:
पटोल पात्र स्वरस , पित्तपापड़ा स्वरस अथवा क्वाथ ,गिलोय का स्वरस, निम्बा त्वक क्वाथ, मुस्तकदी क्वाथ।
4.कफ ज्वर:
शहद, पान का रस, अदरक रस और तुलसी पत्र का रस या क्वाथ.
5.विषम ज्वर:
शहद, पीपल, हरसिंगार के पत्तो का रस, बिल्वपत्र स्वरस, बिल्वमूल चूर्ण, नागरमोथा,कुटज बीज , आम्रबीज, अनार मुल, कुटजवृक्षत्वक्.
6.अतिसार में:
छाछ या चावल धोवन, कुटज की छा एल या जड़ को सिल पर पिस्कर निकला स्वरस , धान्यपंचक क्वाथ, बेल की गिरी का क्वाथ।
7.संग्रहणी में:
छाछ , दही का नितरा हुआ पानी.
8.खुनी बावसिर में:
मक्खन, मिश्री, नागकेसर , असली घी., चीनी, आवले का चूर्ण व अवले का मुरब्बा।
9.अजीर्ण में:
गरम पानी, हींग और सेंधा नमकयुक्त छाछ या नींबू का रस, प्याज़ या पुदीना का रस, अजवाइन का रस, सौंफ का फानट, चित्रक, कालीमिर्च, सोंठ और हिंग इनका चूर्ण गरम पानी में निम्बू निचोदकर, शंखद्रव मिला पानी, सोडावाटर.
10.अग्निमांद्य में:
गरम पानी, पान खाने को दे.
11.विशुचिका में:
अजिर्नोक्त अनुपान दे.
12.पांडु रोग में:
त्रिफला और शहद, त्रिफला वा मिश्री अथवा गोमूत्र, गन्ने का रस, मौसंबी का रस।
13.कामला में:
त्रिफला व शर्करा, कुटकी चूर्ण और चीनी।
14.क्षय में:
मक्खन,शहद और मिश्री, तुलसी पत्र स्वरस, पान का रस, अदरक स्वरस, मुलेठी, तालीसपत्र, पिप्पली काकड़ा सिंगी और वंशलोचन मे से किसी एक का चूर्ण.
15.कफ निकलने वाली खासी व दमा में :
पका पान , अदरक का रस या शहद, तुलसी का रस और मिश्री, चतुरजतावलेह.
16.कफ न निकलता हो तो:.
अडूसे का रस व मधु , अडूसा रस वा मिश्री, काले अंगुर अथवा मुलेठी का क्वाथ, दाडिमावलेह, द्राक्षासव या पिपल्यासव में वासाक्षर या अपामार्गक्षर 4 रत्ती मिलाकार।
17.काली खांसी में:
पका केला , मक्खन , मिश्री दाडिमावलेह , आवले का मुरब्बा , द्राक्षारिष्ट .
18.अरुचि में:
अद्रक, अनार और निम्बू में से किसी एक का या दो अथवा चारो का रस या मिश्रियुक्त अवलेह.
19.अम्लपित्त मे:
अदरक का रस, अनार और मिश्री, आवले का मुरब्बा , चंदन को मिश्री का क्वाथ , दूध घी, दादिमावलेह, चंदनवलेह, द्राक्षावलेह.
20. दाह में:
औदुम्बरावलेह, ददिमावलेह, आवले का मुरब्बा , धनिए का हीम, निम्बू का शरबत, सफ़ेद चंदन घिसकर , जल में मिलकार, खश डाला हुआ मिट्टी के घड़े का ठंडा पानी.
ऊपर दिए गए कुछ अनुपान है जो विभिन रोगो में प्रयोग किये जाते है.